सवाल: नमाज़ की सुन्नतें बयान फ़रमाएं.
जवाब: नमाज़ की सुन्नतें ये हैं:
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- तहरीमा के लिए हाथ उठाना और हाथ की उंगलियाँ अपने हाल पर छोड़ना।
- बवक्ते तकबीर सर न झुकाना और हथेलियों और उंगलियों के पेट का किबला रुख होना।
- तकबीर से पहले हाथ उठाना, इसी तरह तकबीरे कुनूत और तकबीरात-ए-ईदैन में कानों तक हाथ ले जाने के बाद तकबीर कहना।
- औरत को सिर्फ़ मोंडो (कांधो) तक हाथ उठाना।
- इमाम का 'अल्लाहू अकबर', 'समिअ अल्लाहु लिमन हमिदह' और सलाम बुलंद आवाज़ से कहना।
- बादे तकबीर हाथ लटकाए बिना फ़ौरन बांध लेना, सना, त'अव्वुज़, तस्मिय्यह पढ़ना, और आमीन कहना और इन सब का आहिस्ता होना।
- पहले सना पढ़ना, फिर त'अव्वुज़, तस्मिय्यह, और हर एक के बाद दूसरे को फ़ौरन पढ़ना।
- रुकू' में तीन बार 'सुब्हान रब्बियल-अज़ीम' कहना और घुटनों को हाथों से पकड़ना और उंगलियाँ ख़ूब खुली रखना।
- औरत को घुटने पर हाथ रखना और उंगलियाँ कुशादा नहीं रखना, हालते रुकू' में पीठ ख़ूब बिछी रखना।
- रुकू' से उठते वक्त हाथ लटका हुआ छोड़ देना।
- रुकू' से उठते में इमाम को 'समिअ अल्लाहु लिमन हमिदह' कहना, मुक्तदी को 'रब्बना लकल हम्द' कहना और मुंफरिद (अकेले पढ़ने वाले को) को दोनों कहना।
- सजदह के लिए और सजदह से उठने के लिए 'अल्लाहू अकबर' कहना।
- सजदह में कम से कम तीन बार 'सुब्हान रब्बियल-आ'ला' कहना।
- सजदह करने के लिए पहले घुटना, फिर हाथ, फिर नाक, फिर पेशानी ज़मीन पर रखना और सजदह से उठते वक्त पहले पेशानी, फिर नाक, फिर हाथ, फिर घुटना ज़मीन से उठाना।
- सजदह में बाजू कर्वटों से और पेट रानों से अलग होना, और कुत्ते की तरह कलाई ज़मीन पर नहीं बिछाना।
- औरत का बाजू कर्वटों से, पेट रानों से, रान पिंडलियों से और पिंडलियां ज़मीन से मिला देना।
- दोनों सजदों के दरमियान तशह्हुद की तरह बैठना और हाथों को रानों पर रखना।
- सजदों में हाथों की उंगलियों का किबला रुख होना और मिली हुई होना।
- और पांवों की दसों उंगलियों के पेट ज़मीन पर लगना, यानी उंगलियों का किबला की तरफ़ मुड़ना।
- दूसरी रक'अत के लिए पंजों के बल घुटनों पर हाथ रख कर उठना।
- क़अदह में बायां पाँव बिछा कर दोनों सूरीन उस पर रख कर बैठना।
- दाहिना क़दम ख़ड़ा रखना और दाहिने क़दम की उंगलियाँ किबला रुख करना।
- औरत को दोनों पाँव दाहिनी ज़निब निकाल कर बाएं सूरीन पर बैठना।
- दाहिना हाथ दाहिने रान पर और बाएं हाथ बाएं रान पर रखना और उंगलियाँ अपनी हालत पर छोड़ना।
- शहादत पर इशारा करना।
- क़अदह आख़िरा में तशह्हुद के बाद दरूद शरीफ़ और दुआ-ए-मासूरह पढ़ना।