सच की बरकत से 60 डाकू ताइब हो गए
9 ज़िल हुज शरीफ़ को एक लड़का अपने घर से बाहर निकला और खेत में हल चलाने वाले एक बैल के पीछे हो लिया। अचानक बैल उस लड़के की जानिब मुड़ा और नाम ले कर यूं बोला : ऐ फुलां ! तुम खेलकूद के लिये नहीं पैदा किये गए। लड़के ने बैल को इस तरह बात करते सुना तो खौफ़ज़दा हो कर फ़ौरन घर आया और घर की छत पर पहुंचा तो क्या देखता है कि सेंकड़ों मील दूर मैदाने अरफात का मन्ज़र दिखाई दे रहा है जिस में हुज्जाजे किराम घरों से दूर अल्लाह पाक की रिज़ा के हुसूल की खातिर जम्अ थे । उस लड़के ने येह देखा तो अपनी वालिदा की खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ गुज़ार हुवा : "मेरी प्यारी अम्मी जान ! मुझे अल्लाह पाक की रिज़ा के लिये राहे खुदा में वक्फ कर दीजिये और मुझे बगदाद शरीफ़ जा कर इल्मे दीन हासिल करने और अल्लाह पाक के नेक बन्दों की ख़िदमत में हाज़िर हो कर उन का फैज़ान हासिल करने की इजाज़त इनायत फ़रमाइये ।” अम्मीजान ने इस का सबब पूछा तो उस लड़के ने बड़े एहतराम के साथ सारा वाक़िआ कह सुनाया । अल्लाह पाक की मरज़ी व रिज़ा पर अम्मीजान ने लब्बैक कहा और राहे खुदा के इस नन्हे मुसाफ़िर के लिये सामान तय्यार करना शुरू कर दिया और चालीस दीनार (या' नी सोने के सिक्के) अपने लख्ते जिगर (यानी son) की क़मीस के अन्दर सी दिये। फिर सफ़र पर रवाना होने से पहले अपने लख़्ते जिगर से वादा लिया कि हमेशा और हर हाल में सच बोलना और इस के बा'द अपने बेटे को येह कहते हुए अल वदाअ कहा : "जाओ ! मैं ने तुम्हें राहे खुदा में हमेशा के लिये वक़्फ़ कर दिया, अब मैं येह चेहरा क़ियामत से पहले न देखूंगी" (अल्लाह की येह नेक बन्दी जानती थी कि अब मैं जीते जी अपने बेटे को नहीं देख सकूंगी।) Roman English
मां की नसीहत मानने का सिला
येह लड़का एक छोटे से क़ाफ़िले के साथ बग़दाद की जानिब चल पड़ा, रास्ते में एक वाक़िआ पेश आया कि 60 डाकू क़ाफ़िले का रास्ता रोक कर लूटमार करने लगे, उन्हों ने किसी को भी न छोड़ा और हर एक से उस का मालो अस्बाब छीन लिया मगर इस लड़के को कम उम्र जानते हुए किसी ने कुछ भी न कहा, एक डाकू ने क़रीब से गुज़रते हुए ऐसे ही पूछा : क्या तुम्हारे पास भी कुछ है ? लड़के ने बिगैर डरे जवाब दिया : हां ! मेरे पास 40 दीनार (या'नी चालीस सोने के सिक्के) हैं। डाकू ने समझा कि येह हम से मज़ाक कर रहा है और आगे चला गया, इस लड़के से किसी और डाकू ने भी पूछा तो उसे भी येही जवाब दिया कि उस के पास 40 सोने के सिक्के हैं। जब येह दोनों डाकू अपने सरदार के पास गए तो उसे बताया कि हम ने क़ाफ़िले में एक ऐसा जुअत मन्द लड़का देखा जो इस हालत में भी हम से नहीं डरता और हम से मज़ाक करता है। सरदार ने कहा : क्या मज़ाक़ करता है? उस को बुला कर लाओ। जब वोह लड़का आया तो सरदार के पूछने पर अब भी वोही कहा जो पहले कहा था कि मेरे पास चालीस सोने के दीनार हैं, सरदार ने तलाशी ली तो वाकेई उस के लिबास में से चालीस दीनार (40 सोने के सिक्के) मिल गए। लड़के के इस सच बोलने पर सब हैरान हुए और उस से सच बोलने का सबब पूछा तो लड़का कहने लगा : मेरी अम्मी ने घर से निकलते हुए वादा लिया था कि हमेशा और हर हाल में सच बोलना और मैं अपनी अम्मी का वादा नहीं तोड़ सकता। डाकूओं का सरदार येह सुन कर रो पड़ा और कहने लगा : हाए अफ्सोस ! येह लड़का अपनी अम्मी से किये हुए वा' दे की इस तरह पासदारी करे और एक मैं हूं कि सालहा साल हो गए अपने रब के अह्द की खिलाफ़ वरजी कर रहा हूं। उस सरदार ने रोते हुए राहे खुदा के इस नन्हे मुसाफ़िर के हाथ पर तौबा कर ली और उस के बाकी साथी भी येह कहते हुए तौबा करने लगे कि ऐ सरदार ! जब लूटमार के बुरे कामों में तू हमारा सरदार था अब नेकी की राह पर भी तू ही हमारा सरदार होगा।
निगाहे वली में येह तासीर देखी बदलती हज़ारों की तक़दीर देखी
ऐ आशिकाने गौसे आज़म ! राहे खुदा का येह नन्हा मुसाफ़िर कोई और नहीं बल्कि हमारे और आप के प्यारे प्यारे पीरो मुर्शिद, पीरों के पीर, पीर दस्त गीर, रोशन ज़मीर, कुत्बे रब्बानी, महबूबे सुब्हानी, पीरे लासानी, पीरे पीरां, मीरे मीरां शैख सय्यिद अबू मुहम्मद अब्दुल कादिर जीलानी थे। सच बोलने की भी क्या खूब बरकतें हैं कि सच की बरकत से डाकूओं को सरदार समेत तौबा की सआदत नसीब हो गई । हर मुसल्मान को चाहिये कि वोह अपने दीनी व दुन्यवी तमाम मुआमलात में सच बोले, सच बोलना नजात दिलाने और जन्नत में ले जाने वाला काम है ।