नमाज़ के फ़राइज़

Barkati Kashana
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Refrence | Anware Shariyat

सवाल: नमाज में कितनी चीजें फ़र्ज़ हैं?

जवाब: नमाज में छह 6 चीजें फ़र्ज़ हैं - कियाम, क़िरअत, रुकू, सजदा, क़अदा आख़िरह, ख़ुरूज बिसुन'इही।

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कियाम

  • सवाल: कियाम फ़र्ज़ है, इसका क्या मतलब है?
  • जवाब: इसका मतलब है कि खड़े हो कर नमाज़ अदा करना ज़रूरी है, तो अगर किसी ने बग़ैर उज़्र के बैठ कर नमाज़ पढ़ी तो नहीं हुई। चाहे औरत हो या मर्द - हाँ, नफ़्ल नमाज़ बैठ कर पढ़ना ज़ाइज़ है। (बहार-ए-शरीअत)


क़िरअत

  • सवाल: क़िरअत फ़र्ज़ है, इसका क्या मतलब है?
  • जवाब: इसका मतलब है कि फ़र्ज़ की दो रक'तों में और वित्र, सुन्नत और नफ़्ल की हर रक'त में क़ुरान शरीफ़ पढ़ना ज़रूरी है, तो अगर किसी ने इन में क़ुरान न पढ़ा तो नमाज़ नहीं होगी। (बहार-ए-शरीअत)


  • सवाल: क़ुरान मजीद आहिस्ता पढ़ने का अदना दर्जा क्या है?
  • जवाब: आहिस्ता पढ़ने का अदना दर्जा यह है कि खुद सुने, अगर इस क़दर आहिस्ता पढ़ा के खुद न सुना तो नमाज़ नहीं होगी। (आलिम्गिरी बहार-ए-शरीअत)


रुकू

  • सवाल: रुकू का अदना दर्जा क्या है?
  • जवाब: रुकू का अदना दर्जा यह है कि हाथ घुटने तक पहुंच जाए और पूरा रुकू यह है कि पीठ सीधी बिछा दे और सर पीठ के बराबर रखे, ऊँचा नीचा नहीं रखे।


सजदा

  • सवाल: सजदा की हक़ीक़त क्या है?
  • जवाब: पेशानी ज़मीन पर ज़मना सजदा की हक़ीक़त है और पाँव की एक उंगली का पेट ज़मीन से लगना शर्त है, यानी कम से कम पाँव की एक उंगली को मोड कर क़िब्ला रुख करना ज़रूरी है। अगर किसी ने इस तरह सजदा किया के दोनों पाँव ज़मीन से उठे रहे तो नमाज़ नहीं हुई, बल्कि सिर्फ़ उंगली की नोक ज़मीन से लगी जब भी नमाज़ नहीं हुई। (बेहार-ए-शरीअत)


  • सवाल: कितनी उंगलियों का पेट ज़मीन से लगना वाजिब है?
  • जवाब: दोनों पाँव की तीन तीन (3-3) उंगलियों का पेट ज़मीन से लगना वाजिब है।


क़अदा आख़िरह

  • सवाल: क़ाअदा आख़िराह का क्या मतलब है?
  • जवाब: नमाज़ की रकातें पूरी करने के बाद अत्ताहिय्यात और दुरूद-ए-इब्राहीमी तक पढ़ने की मिक़दार बैठना फ़र्ज़ है। (बहार-ए-शरीअत)


ख़ुरूज़ बिसुन'इही

  • सवाल: ख़ुरूज़ बिसुन'इही किसे कहते हैं?
  • जवाब: क़ाअदा आख़िराह के बाद नमाज़ को तोड़ देने वाला कोई काम जान बूझ कर करने को ख़ुरूज़ बिसुन'इही कहते हैं, लेकिन सलाम के अलावा कोई दूसरा नमाज़ को तोड़ देने वाला काम जान बूझ कर पाया गया तो नमाज़ का दोबारा पढ़ना वाजिब है।

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