इसी शहर से ही याजूज माजूज का क़िताल और फसाद शुरू होगा।
फलस्तीन को नमाज़ के फ़र्ज़ होने के बाद "क़िब्ला ए अव्वल" होने का एजाज़ भी हासिल है। हिजरत के बाद जिबरील अलैहि० अल्लाह के हुक्म से नमाज के दौरान ही मुहम्मद ﷺ को मस्जिद ए अक्सा से बैतुल्लाह (काबा) की तरफ़ रुख़ करा गए थे, जिस मस्जिद में ये वाकिया पेश आया था वह मस्जिद आज भी मस्जिद ए क़िब्ला तैन कहलाती है।
हुजूर अकरम (ﷺ) मे'अराज की रात आसमान पर ले जाने से पहले मक्का मुकर्रमा से बैतुल मुकद्दस (फलस्तीन) लाए गए।
अल्लाह के रसूल ﷺ की इक़्तेदा में सारे नबियों ने यहां नमाज़ अदा फरमाई।
इस्लाम का सुनहरी दौर फारूकी में दुनिया भर के फतह को छोड़ कर महज़ फ़लस्तीन की फ़तह के लिए खूद उमर (रजि०अ०) जाना और यहां पर जाकर नमाज़ अदा करना, इस शहर की अज़मत को बताता है।
दुसरी बार यानि 27 रजब 583 हिजरी जुमा के दिन को सलाउद्दीन अय्युबी के हाथों इस शहर का दोबारा फ़तह होना।
बैतूल मुकद्दस का नाम "कुदुस" कूरान से पहले तक हुआ करता था, कूरान नाजिल हुआ तो इसका नाम " मस्जिद ए अक्सा" रखा गया, इस शहर के हुसूल और रूमियो के जबर वह सितम से बचाने के लिए 5000 से ज्यादा सहाबा किराम रजि०अ० ने जामे शहादत नोश किया, और शहादत का बाब आज तक बंद नही हुआ, सिलसिला अभी तक चल रहा है, ये शहर इस तरह शहीदों का शहर है।
मस्जिद ए अक्सा और शाम की की अहमियत हरमैन की तरह है, जब कूरान पाक की ये आयत
उम्मत ए मोहम्मदी हकीकत में इस मुकद्दस सरजमीं की वारिस है।
फलस्तीन की अज़मत का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां पर पढ़ी जाने वाली हर नमाज़ का अज्र 500 गुना बढ़ा कर दिया जाता है।