- सलाम करना हमारे प्यारे आका ताजदारे मदीना ﷺ की बहुत प्यारी सुन्नत है। बद किस्मती से आज कल ये सुन्नत खतम होती हुई नज़र आ रही। अब लोग आपस में जब मिलते हैं तो अस्सलामु अलैकुम से शुरुवात करने के बजाए “आदाब अर्ज़„ “क्या हाल है„ सुबह बखैर, शब बखैर वगैरा वगैरा अजीब गरीब लफ्जों से बात चीत की शुरुआत करते हैं, ये सुन्नत के खिलाफ है, रुखसत होते हुए भी “ खुदा हाफ़िज़, गुड बाय, टाटा वगैरा कहने के बजाए सलाम करना चाहिए। हां रुखसत होते वक्त सलाम के बाद अगर खुदा हाफ़िज़ कह दें तो कोई हर्ज नहीं।
- सलाम के बेहतरीन अल्फाज़ ये हैं السلام عليكم و رحمة الله و بركاته““ ( अस्सलामू अलैकुम वा रहम तुल्लाही वा बरकात हु ) यानी तुम पर सलामती हो और अल्लाह की पाक को तरफ से रहमतें और बरकतें नज़िल हों।
- सलाम के जवाब के बेहतरीन अल्फाज़ ये हैं: "وعليكم السلام ورحمة الله و بركاته" वा अलैकुम अस सलाम वा रहम तुल्लाही वा बरकात हु ( और तुम पर भी सलामती हो और अल्लाह पाक की तरफ से रहमतें और बरकतें नाजिल हों। )
सलाम करने से आपस में मुहब्बत पैदा होती है। हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हु से मरवी है के, हुजूर ﷺ ने इरशाद उस जात की कसम जिस के कब्ज़ में मेरी जान है, तुम जन्नत में दाखिल नहीं होगे जब तक तुम ईमान न लाओ और तुम मोमिन नहीं हो सकते जब तक के तुम एक दूसरे से मुहब्बत न करो, क्या मैं तुम को एक ऐसी चीज़ न बताऊं जिस पर तुम अमल करो तो एक दूसरे से मुहब्बत करने लगो: ( चुनांचे इरशाद फ़रमाया ) अपने दरमियान सलाम को आम करो