नमाज़ किस पर फ़र्ज़ है...?
हर मुसलमान, आकिल बालिग मर्द और औरत पर रोज़ाना 5 वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ है। उसकी फ़र्ज़ीयत (यानी फ़र्ज़ होने) का इंकार कुफ़्र है। जो जान-बूझ कर एक नमाज़ तर्क करे वो सख़्त गुनाहगार और आज़ाबे नार का हक़दार है। Roman English Me Padhe
नमाज़ के मुतालिक़ चंद आयातें मुबारका
अल्लाह पाक इर्शाद फ़रमाता है:
तर्जुमा कंजुल इर्फ़ान: और मेरी याद के लिए नमाज़ क़ाएम रख।
एक और मुक़ाम पर इर्शाद होता है:
तर्जुमा कंजुल इर्फ़ान: और वो जो अपनी नमाज़ों की हिफ़ाज़त करते हैं। यही लोग वारिस हैं। ये फ़िरदौस की मीरास पाएंगे। वो उस में हमेशा रहेंगे।
एक और मुक़ाम पर इर्शाद होता है:
तर्जुमा कन्ज़ुल इर्फ़ान: और नमाज़ क़ाएम रखो और ज़कात दो और रसूल की फ़र्मा बरदारी करते रहो उम्मीद पर कि तुम पर रहम किया जाए।
नमाज़ के मुतालिक़ 2 अहादीस मुबारका
हज़रत इब्न-ए-अब्बास रज़ि अल्लाहू अनहू से रिवायत है के पियारे पियारे आका, मदीने वाले मुस्तफा ﷺ ने हज़रत मुआज़ रज़ि अल्लाहू अनहू को यमन की तरफ़ रवाना किया तो फ़रमाया के तुम अहल-ए-किताब के पास जा रहे हो तो उन्हें इस बात की दावत देना के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और बे-शक मुहम्मद ﷺ अल्लाह पाक के रसूल हैं। अगर वो इस में फ़र्मा बरदारी करें तो उन्हें बताना के अल्लाह करीम ने उन पर दिन रात में पांच नमाज़ें फ़र्ज़ फ़रमाई हैं। फ़िर अगर वो यह भी मान जाएं तो उन्हें सिखाना के अल्लाह पाक ने उन पर ज़कात फ़र्ज़ की है जो उनके मालदारों से ली जाएगी और उन्हीं के फ़क़ीरों को दी जाएगी। फ़िर अगर यह भी मान लें तो उनके बेहतरीन मालों (यानी ज़कात में बेहतरीन माल वसूल न करना। बल्कि दरमियानी माल लेना हा अगर ख़ुद मालिक ही बेहतरीन माल अपनी ख़ुशी से दें तो उनकी मर्ज़ी है) से बचना और सितम रसीदा की बद दुआ से डरना के उस के और रब के दरमियान कोई आद नहीं।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मासूद (रज़ीअल्लाहु अन्हु) से मरवी के एक साहिब से एक गुनाह सादिर हो गया, इसने सरवर-ए-कैनात (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को आकर उस की ख़बर दी, चुनांचे यह आयत-ए-करीमह नाज़िल हुई।
तर्जुमा कन्ज़ुल -इर्फ़ान: और दिन के दोनों किनारों और रात के कुछ हिस्से में नमाज़ क़ाएम रखो। बेशक नेकियाँ बुराईयों को मिटा देती हैं, यह नसीहत मानने वालों के लिए नसीहत है।
उन्होंने अर्ज़ की, 'या रसूल अल्लाह! क्या यह ख़ास मेरे लिए है?' फ़रमाया: 'मेरी सारी उम्मत के लिए है।
हज़रत मुफ्ती अहमद यार ख़ान नईमी (रहमतुल्लाह अलैह) इस हदीस पाक की शरह में लिखते हैं: यानी यह आयत अगर चे तो तेरे बारे में आई मगर इस का हुक़्म आम है। कोई मुसलमान कोई गुनाह सगीरा करे, उस की नमाज़ें और वग़ैरह माफ़ी का ज़रिया है। इस से मालूम हुआ के अजनबी से खुलवत और बूस ओ किनारा गुनाह सगीरा है, हाँ ये जुर्म बार बार करने से कबीरा बन जाएगा क्यूंके सगीरा पर दवाम (यानी हमेशा) कबीरा है। मज़ीद फरमाते हैं: यह हदीस उस के लिए है जो इत्तिफाक़ से ऐसा मामला कर बैठे, फिर शर्मिंदा होकर तौबा करे, लिहाज़ा हदीस पर ये इतिराज़ नहीं के इस में उन हरकतों की इजाज़त दी गई है। मज़ीद फरमाते हैं: मालूम हुआ के ये आसानियाँ सिर्फ़ इस उम्मत के लिए हैं, गुज़श्ता उममतों की मुआफ़ी बहुत मुश्किल होती थी।