ढोल ताशे गाने बाजे का बयान

Barkati Kashana
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 "ومن الناس من يشترى لهو الحديث ليضل عن سبيل الله بغير علم ويتخذها هزوا آولئك لهم عذاب مهين” (सूरह लुक्मान: आयत: 6) तर्जुमा: कंज़-उल-इरफ़ान) और कुछ लोग खेल की बातें ख़रीदते हैं ताकि बिना समझे अल्लाह की राह से भटका दें और उन्हें हंसी मज़ाक बना लें। उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब है। इस आयत में 'لَهْوَ الْحَدِیْثِ' से मतलब मुमताज़ मुफस्सिरीन का एक क़ौल यह है कि इससे मुराद गाना बजाना है, इस मौक़े से यहां गाने बजाने की मज़म्मत पर 2 अहादीस। 


  1. हज़रत इमरान बिन हुसैन रदिय़-अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है, रसूल-ए-अकरम सल्ल-अल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, 'इस उम्मत में ज़मीन में धसना، मस्ख होना और आसमान से पत्थर बरसना होगा। मुस्लिमानों में से एक शख्स ने अर्ज़ की: या रसूल-अल्लाह! सल्ल-अल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम, यह कब होगा? इरशाद फ़रमाया, 'जब गाने वालियों और मौसीकी के आलात का ज़हूर होगा और शराबों को (सर-ए-आम) पिया जाएगा।' (तिरमिज़ी, किताब उल-फितन, बाबे मा जाआ फी अलामती हुलूलिल मस्ख वलखिस्फ, 4/90, हदीस: 2219)
  2. हज़रत अनस रदियअल्लाहु तआला अनहु से रवायत है، रसूल करीम सल्लअल्लाहु तआला अलैहि वालिहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया, 'जो शख्स गाना सुनने के लिए किसी बांदी के पास बैठा है, उसके कानों में पिघला हुआ सीसा उड़ेला जाएगा।' (इब्न असाकर، हर्फ़ अलमीम، 6064-मोहम्मद बिन इब्राहीम अबू बक्र अस-सूरी، 51/263)

नूर-ए-हिदायत ﷺ ने फरमाया:

    बेशक! अल्लाह ने मेरे लिए शराब, जुआ और ढोल बजाना हराम करार कर दिया है। सुनन अबू दाऊद हदीस 3696

एक तारीखी फैसला:

    एक शख्स ने किसी दूसरे शख्स का ढोल तोड़ दिया,तो वो दूसरा शख्स अपना मामला क़ाज़ी शुरैह रहमतुल्लाह अलैह के पास ले गया तो उन्होंने पहले शख्स पर कोई जुर्माना नहीं लगाया। यानी उसे ढोल की कीमत अदा करने का हुक्म नहीं दिया, क्योंकि वो (ढोल बजाना) हराम काम है और इसी वजह से उस (जुर्माने) की कोई कीमत नहीं थी।मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा 3/395

और फतावा रज़विया में है, इसी तरह ये गाने बाजे कि इन बलाद में मामूल वा राईज हैं, बिला शुबह ममनूअ और नाजायज़ हैं (जिल्द 9, पृष्ठ 77, निस्फ अव्वल) / 263) नीज़ उसी में है" क़व्वाली की तरह पढ़ने से, अगर इसका मतलब है कि "ढोल सितार के साथ जब तो हराम सख़्त हराम है" (जिल्द 9, सफह 185, आख़िर)

और फतावा अमजदीया में हैं: 'ढोल बजाना, औरतों का गाना, नाच, बाजा, ये सब हराम हैं' (जिल्द 4, पृष्ठ 75)

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